Wednesday 27 August 2014

न इज़्हार न प्यार करना/N izhaar n pyaar karna

यहाँ हर किसी से न इज़्हार करना
यहाँ हर किसी से न अब प्यार करना

कहाँ हर कली ही गुलाब सी होती
किसी से भी संभल के इक़रार करना

यहाँ पीर काफ़िर बने घूमते हैं
जरा सोच कर अब ही इतिबार करना
 
क़दम दर क़दम ठोकरें भी मिले तो
ख़ुदी से कभी तुम न तक़रार करना

ग़मे ज़िंदगी क्यूँ बिताएँ यहाँ हम
ये रहमत ख़ुदा की है गुलज़ार करना

अगर तीरगी ज़िद्द पे आ गई है
'अभी' फ़िर दीये की तू बौछार करना 
-अभिषेक कुमार ''अभी''
Yahan har kisi se n izhaar karna
Yahan har kisi se n ab pyaar karna

Kahan har kli hi gulab si hoti
Kisi se bhi sambhal ke ikraar karna

Yahan peer kafir bane ghumte hain
Jara soch kar ab hi itibaar karna

Qadam dar qadam thokren bhi mile to
Khudi se kabhi tum n taqraar karna

GmeN zindgi kyun bitayen yahan ham
Ye rahmat khuda ki hai gulzaar karna

Agar teergi zidd pe aa gyi hai
'Abhi' fir diye ki tu bauchhar karna
-Abhishek Kumar ''Abhi''

Sunday 24 August 2014

कैरियर एकदम सेट है।

रामबुधन जी के तीन बच्चे हुआ करते थे। 

वैसे हैं तो अब भी, मगर नहीं के बराबर। अब वो क्यों नहीं के बराबर हैं, ये जानते हैं :

बात उस समय की जब रामबुधन जी का बड़ा बेटा 14 साल का, मझला बेटा 12 और छोटा क़रीब 9 साल का था। ये उम्र ऐसी है, जिसमें हर माँ-बाप को अपने बच्चों पे निगरानी रखनी पड़ती है। रामबुधन जी भी सभी के क्रियाकलापों को जानने ख़ातिर, सभी को बिन बताये, उन पर नज़र रख रहे थे। कुछ ही दिन में तीनों का चाल प्रकृति उनको समझ में आ गया।

फ़िर एक दिन शाम को आँगन में बैठे चाय की चुस्की लेते हुए, अपने जीवन के हिस्सेदार से मुख़ातिब हो बोले, लक्ष्मी हमारे तीनों बेटों का कैरियर एकदम सेट है। लक्ष्मी जी प्रसन्न चित्त मुद्रा में बोली, क्यूँ जी कोई ज्योत्षी को दिखाए हैं क्या ?
रामबुधन जी बोले, अर्रे नहीं मेरे जीवन के खैव्या, ये हम कह रहे हैं हम। 

अब तपाक से लक्ष्मी जी बोल पड़ी कैसे ?
तो रामबुधन जी बोले, हमने दो दिन रामकिशन का पीछा किया कि आखिर ये दिन भर क्या सब करता है, तो पता चला की ये तो 
- बातें फेंकने में माहिर है। 
- अपने दोस्तों को ख़्वाब दिखा-दिखा कर उनसे सारा काम करवा लेता है।
- झूठ तो ऐसे बोलता है जैसे सत्यवादी रामकिशन यही हो साक्षात् और 
- सामने से हाथ जोड़ता है, फिर पीठ पीछे उसी को गाली।
अब तुम समझ जाओ ये क्या बनेगा !

और हमारा दूसरा बेटा ?
वो तो अपने नाम रामपाल और सेहत की तरह ही है।
- कभी किसी वाहन का किराया नहीं देता, चाहे वो बस वाला हो या रिक्शा वाला न जाने हर जगह किस बात का स्टाफ़ चलता है।
- बाज़ार जब भी जाता है हर दूकान में घुस के कुछ न कुछ खाके बिना पैसे दिए निकल जाता है। 
- और तो और ये कहते भी सुना कि एक दिन ऐसा आएगा की सब उसे महीने में पैसे भिजवाया करेंगे।
अब तुम समझ जाओ ये क्या बनेगा !

माँ तो माँ होती है, लक्ष्मी जी के चेहरे पे शिकन आ गई और मायूस स्वर में बोली, कि ऐ जी तीसरा क्या बनेगा ?
रामबुधन जी, गहरी सांस छोड़ते हुए बोले, वो रामचरण ! 
- वो भी अपने नाम जैसा ही है, दोनों भाइयों के चरणों में पड़ा रहता है।
- किसी भी दोस्त का काम पड़ता है तो, उनसे पैसे लेकर, दोनों भाइयों को कहता है मदद करने को।
- सभी में हमेशा अपने दोनों भाइयों की डींगे हांकता रहता है।

दिन बीतते गए, महीने बीत गए अब सालों गुज़र गए। 
रामबुधन जी की भविष्यवाणी सत्य हुई। बड़ा लड़का ''नेता'' बन गया, मझला ''पुलिसवाला'' बना और छोटा ''चपरासी'' बन बैठा। 

अब आप ही बताईये की क्या ये तीनों किसी के सगे हुए हैं ?
फिर रामबुधन जी के कैसे होते ! दोनों बूढ़ा-बुढ़िया गाँव में बसर कर रहे हैं और ये तीनों शहर में ऐश कर रहे हैं।
-अभिषेक कुमार ''अभी''

Friday 22 August 2014

हम भी अब नेता बनेंगे !

एक था 'रामबुधन्वा', बेरोज़गार गाँव का नौजवान। 
एक दिन उसके गाँव में आ गए नेता जी। नेता जी के ठाठ-बाठ देखकर रामबुधन्वा भौंचक्का हो गया। नेता जी भी एक दम से चमचमाती बी.ऍम.डब्लू कार से उतरे, एक दम सफ़ेद चक्का-चक लिबास में, हाथ में दो ठो मुआइल लिए, लेफ़्ट और राइट में दो सुन्दर कन्या के हाथ में फ़ाइल और उसके पीछे, ये छः छः फ़ीट के दो गो जवान, एकदम काले लिबास में, आँखों पे चश्मा लगाए, हाथ में हथियार लिए। 
जैसे ही, रामबुधन्वा पहुँचा नेता जी से मिलने, कि तपाक से वो दोनों अंगरक्षक ने आगे बढ़कर रोक दिया, रामबुधन्वा भी ताव में आ गया, क्यूंकि वो नेता कोई और नहीं, उसका दोस्त था। जो गाँव में साथ पढ़ता था, फिर एक बार एकाएक गायब हो गया। रामबुधन्वा और दोनों अंगरक्षक में जोड़-जबरदस्ती होने लगी, तो उसने रामबुधन्वा को दे दिया धक्का। अब रामबुधन्वा गया गिर, बेचारे को चोट भी तेज़ लग गयी। 
पर किसी को क्या फ़र्क पड़ता है। नेता जी और उनका लाव-लश्कर आगे निकल गया और रामबुधन्वा वहाँ से उठकर घर की ओर निकल गया।

शाम हुई, खाने पे बैठा रामबुधन्वा अपने में ही खोया-खोया सा था, तो उसके पिता ने पूछा '' के हुआ रे तोहरे के ?''
रामबुधन्वा, नज़रें नीची करके बोला हम भी अब नेता बनेंगे !
रामबुधन्वा के घर सब लोग एक साथ हँसने लगे। हँस काहे रहे हो, हम सच कह रहे हैं, हम भी अब नेता बनेंगे !
इसपर उसके पिता ने कहा, ठीक है, अभी खाना खा कल नेता बनयो। 

अब रामबुधन्वा को रात भर नींद आई नहीं, सुबह उठते ही, पिता से बोला, हमखे बता बsss कि कैसे नेता बने ?
इस पर बड़े प्यार से पिता ने कहा, एक बात बता

- कभी किसी की हत्या की है ?
- नहीं ! पिता जी  
- कभी किसी के साथ बलात्कार ?
- छिः छिः कैसी बात पूछ रहे हैं आप 
- अच्छा चोरी की है ?
- नहीं तो 
- अच्छा किसी लड़की को तो छेड़ा ही होगा 
- नाहि ! हम अइसन नाहि हैं 
- अच्छा, गाँव वाले तो तेरे से डरते होंगे !
- अर्रे, कैसे डरेंगे हम तो सबसे प्यार से पेश आते हैं
- अच्छा अब अंतिम प्रश्न, कभी कोर्ट/कचहरी या हवालात गया है ?
- पिताजी आप भी कमाल कर रहे हैं, जब हमने ऐसा कोई गलत काम कभी किया ही नहीं है, तो काहे जायेंगे वो नरक में !

तो, मेरा भोला बेटा अब सुन, तू अपने सर से ये नेता बनने का भूत जल्दी उतार ले, तू नेता क्या उसका चपरासी भी नहीं बन सकता और अगर कोई काम नहीं मिल रहा है, तो खेती कर, भैंस पाल। क्यूंकि नेता बनने के लिए, ये सब ज़रूरी है। जो तूने कभी किया नहीं, और ना ही कभी कर सकता है। 
-अभिषेक कुमार ''अभी''

Saturday 16 August 2014

एक नज़र ''पुस्तकाभारती प्रकाशन'' पर



एक सपना जो पिछले कई वर्षों से मन में पल रहा था, वो अब जाके अपने सफ़ल होने के कगार पर है। 
जी हाँ ! 
मेरे सभी स्नेही मित्रों, शुभचिंतकों और गुरुजनों, ''पुस्तकाभारती प्रकाशन'' के नाम से प्रकाशन के क्षेत्र में क़दम रख रहा हूँ।
''पुस्तकाभारती प्रकाशन'' का पंजीकरण प्रमाण पत्र आज ही मेरे हाथ में आया है।

जहाँ तक प्रकाशित पुस्तकों की सूची है, तो वो पहले चरण में ''10 पाण्डुलिपियों'' का चयन पहले ही हो चूका है, जिसमें 
१ व्यंग्य कथा संग्रह (एक)
२ हास्य कथा संग्रह (एक)
३ ग़ज़ल संग्रह (एक)
४ हिंदी ग़ज़ल संग्रह (एक)
५ उपन्यास संग्रह (एक)
६ काव्य संग्रह (दो)
७ साझा काव्य संग्रह (एक)
८ अंग्रेजी नॉवेल (दो)
लेख़क और लेखिकाओं का नाम बहुत जल्द पुस्तक के कवर पेज़ के साथ आपके सामने होगा।

इस कार्य को सफल बनाने में बहुत से गण-मान्य जनों का साथ मिला है, और और आगे भी देने का आश्वासन दिया है, उसके लिए मैं इन सभी का हार्दिक आभारी हूँ।

और अभी तो बस मैं यही कह पा रहा हूँ कि 
मैं अकेला ही चला था जानिबे मंज़िल मगर 
आप सब मिलते गए और कारवाँ बनता गया
साथ ही आप सभी मित्रों ने जो आज ४ साल से साथ निभाया है, हौसला बढ़ाया है 
उसके लिए भी आप सभी का हार्दिक धन्यवाद। इसी तरह आगे भी आप सब अपना स्नेह और आशीष इस प्रकाशन को भी देंगे ऐसा मैं आशा करता हूँ।

लक्ष्य : 
एक ऐसा प्रकाशन बनाना जो की साहित्यिक जगत में चल रहे राजनीति से दूर रहकर साहित्य को जन-जन तक पहुँचाये साथ ही छोटे-बड़े सभी की अभिव्यक्ति को सराहते हुए, उन्होंने आगे बढ़ाए।
जय माँ शारदे 
-अभिषेक कुमार ''अभी''
(+91-9953678024)

Thursday 14 August 2014

जश्ने आज़ादी / Jashne Aazadi

हो गए हैं सरसठ साल 
दिन दिन बढ़ती आबादी है 
जश्ने आज़ादी जारी है
जश्ने आज़ादी जारी है

भूख से कितने ही लाचार हैं 
गली गली में फिरता भिखारी है 
जश्ने आज़ादी जारी है
जश्ने आज़ादी जारी है

पढ़ लिख के घूमे बिना काम
फ़ैली यहाँ बेरोज़गारी है
जश्ने आज़ादी जारी है
जश्ने आज़ादी जारी है

माँ का दर्ज़ा जिसको देते 
उसी को कोख़ में मारी है 
जश्ने आज़ादी जारी है  
जश्ने आज़ादी जारी है

नित् नित् होते हैं बलात्कार
फिर भी पलता बलात्कारी है
जश्ने आज़ादी जारी है
जश्ने आज़ादी जारी है

भ्रष्टाचार में ट्रॉफ़ी जीतते,फिर भी 
सत्ता पे क़ाबिज़ भ्रष्टाचारी है
जश्ने आज़ादी जारी है
जश्ने आज़ादी जारी है

जिस बेटे को अलग किया था 
वो बन बैठा अतिक्रमणकारी है 
फिर चुप हो सहते हम सब 
कैसी ये लाचारी है ?
जश्ने आज़ादी जारी है
जश्ने आज़ादी जारी है
(जय हिन्द, जय भारत)
-अभिषेक कुमार ''अभी''
Ho gye hain sarsath saal
Din din badhti aabadi hai
Jashne aazadi jari hai
Jashne aazadi jari hai

Bhookh se kitne hi lachar hain
Gli gli me firta bhikhari hai
Jashne aazadi jari hai
Jashne aazadi jari hai

Padh likh ke ghume bina kaam
Faili yahan berozgari hai
Jashne aazadi jari hai
Jashne aazadi jari hai

Maa darza jisko dete
Usi ko kokh me maari hai
Jashne aazadi jari hai
Jashne aazadi jari hai

Nit nit hote hain blatkaar
Fir bhi palta blatkaari hai
Jashne aazadi jari hai
Jashne aazadi jari hai

Bhrshtachar me trophy jit'te
Satta pe kabiz bhrshtachari hai
Jashne aazadi jari hai
Jashne aazadi jari hai

Jis bete ko alag kiya tha
Wo ban baitha atikramnkari hai
Fir bhi chu ho sahte ham sab
Kaisi ye lachari hai
Jashne aazadi jari hai
Jashne aazadi jari hai
-Abhishek Kumar ''Abhi''

Tuesday 12 August 2014

अब ये मेरा जीवन/Ab ye mera jeevan

इतना बता दे उनको, जाके तू ऐ पवन
उनके बिना व्याकुल, अब ये मेरा जीवन

हरपल ही आस में बैठी, भूखी और प्यासी
वो छोड़ मुझे क्यूँ दूर, बनके जैसे सन्यासी
प्रीत में उनके जोगन बन फिरती वन में हूँ 
उनके बिन सुना सुना है, ये मेरा घर आँगन

इतना बता दे उनको, जाके तू ऐ पवन
उनके बिना व्याकुल, अब ये मेरा जीवन

मैं एक कली थी, बगियन की शोभा बढ़ाती 
मैं तो एक पंछी थी, ऊँचे गगन में विचरती 
जिसे देख मन हो हर्षित, नैन चैन पाते थे 
अब हरपल ही जलती है, मेरे अंदर अगन

इतना बता दे उनको, जाके तू ऐ पवन
उनके बिना व्याकुल, अब ये मेरा जीवन

उनसे प्रेम किया, उनसे ही निभाई प्रीत
बदले ये सिला मिला, लिखूँ विरह के गीत
बरखा बहे नैनों से, जीवन सुखा सुखा है
पीड़ा के बादल फटने से घायल मेरा तन

इतना बता दे उनको, जाके तू ऐ पवन
उनके बिना व्याकुल, अब ये मेरा जीवन
-अभिषेक कुमार ''अभी''
Itna btaa de unko, jaake tu e pawan
Unke bina vyakul, ab ye mera jeevan

harpal hi aas me baithee, bhookhi or pyaasi
Wo chhod mujhe kyun door, bnke jaise sanyasi
Preet me unke jogan ban firtee van me hun
Unke bin suna suna hai, ye mera ghar aangan

Itna btaa de unko, jaake tu e pawan
Unke bina vyakul, ab ye mera jeevan

Main ek kalee thi, bagiyan ki shobhaa badhaati
Main to ek panchhi thi, unche gagan me vicharti
Jise dekh ke man ho harshit, nain chain pate the
Ab har pal hi jalti hai, mere andar agan

Itna btaa de unko, jaake tu e pawan
Unke bina vyakul, ab ye mera jeevan

Unse prem kiya, unse hi nibhai preet
Bdle ye sila mila, likhun virah ke geet
Brkha bahe naino se, jivan sukha sukha hai
Peeda ke badal fatne se ghayal mera tn

Itna btaa de unko, jaake tu e pawan
Unke bina vyakul, ab ye mera jeevan
-Abhishek Kumar ''Abhi''

Friday 8 August 2014

सुनो ! ऐसा क्यों / Suno ! Aisa Kyun

धीर-गम्भीर समुद्र में 
ये भीषण चक्रवात क्यों, 
अडिग-अटल पर्वतों पे 
ये भू-स्खलन क्यों,
वर्षों से भार ढ़ो रही 
है ये वसुंधरा 
और अब भू-कम्पन क्यों?

देवी-देवताओं को भी 
दौलत के तराजू में 
तौलने की ये होड़ क्यों, 
आदि-अनंत काल से 
चली आ रही 
अनेक परम्पराओं का 
दिन-प्रति दिन अंत क्यों?

पाप क्या, पुण्य क्या 
अब किसे है परवाह
स्वार्थों से वशीभूत होकर 
इंसानियत हो रही है स्वाहा।

सुनो,
स्वर्ग-नर्क कुछ भी नहीं 
कर्म और दुष्कर्म का 
फल भोगना है यहीं। 
कण-कण में हैं ईश्वर
नहीं सम्भले,
तो आने वाला है वो पल 
जब जग हो जायेगा नाश्वर !
-अभिषेक कुमार ''अभी''
Dhir-gambhir samudra me
Ye bhishan chakrwaat kyun
Adig-atal parwaton pe
Ye bhu-skhalan kyun
Varshon se bhar dho rhi
Hai ye vasundhra
Or ab bhu-kampan kyun?

Devi-dewtaon ko bhi
Daulat ke tarazu me
Taulne ki ye hod kyun
Aadi-anant kaal se
Chli aa rhi
Anek parampraon(Tradition) ka
Din-parti din ant kyun?

Paap kya, puny kya
Ab kise hai parwaah
Swarthon se vashibhut hokar
Insaniyat ho rahi hai swahaa.

Suno,
Swarg-nark kuchh bhi nahi
Karm or dushkarm ka
Phal bhogna hai yahin.
Kan-kan me hain ishwar
Nahi sambhle,
To aane wala hai wo pal
Jab jag ho jayega Nashwar !
--Abhishek Kumar ''Abhi''