Saturday 13 September 2014

एक दूजे का साथ दें यही प्रसंशनीय है


देश की दशा अपने आप सुधर जाएगी 
जब कथनी कम हो करनी बढ़ जाएगी
चारों तरफ़ सिर्फ़ ख़ुशहाली हो जाएगी 
जब अनेकता में एकता घर बनाएगी

कहते हो तुम हिंदी की दशा दयनीय है 
आख़िर किसने किया इसे निंदनीय है
सिर्फ़ आरोप-प्रत्यारोप नहीं शोभनीय है  
एक दूजे का साथ दें यही प्रसंशनीय है

दीये से दीया जलाकर हर घर उजियारा हो
सबकी ख़ुशी सब हों सुखी बस ये नारा हो
न ये मेरा न ये तुम्हारा बस एक हमारा हो 
विश्व में परचम लहराएँ देश अपना प्यारा हो

सिर्फ़ अपना अपना फ़र्ज़ अदा करें ये वंदन है 
इस ओर जो क़दम बढ़ाए उसके सर चंदन है
सब में ईश्वर बसते हैं सब यहाँ रघुनन्दन है
आपके काम मैं आऊँ तो हार्दिक अभिनन्दन है  
-अभिषेक कुमार ''अभी''

Wednesday 10 September 2014

दर्द की जुबाँ कहाँ/Dard ki jubaN kahan

दर्द की कोई 
जुबाँ कहाँ 
ये तो ख़ामोश हो 
दिल को 
एहसास कराती रहती है
हों महफ़िल में 
या तन्हाई में 
ये तो हरपल ही 
रूलाती रहती है 
चैन पाना चाहें
समझ न आये 
कहाँ को जायें
जहाँ भी जायें 
ये झट पहुँच जाती है
बिन पानी मछली सी
ज़िंदगी को 
छटपटाती रहती है
किसी को भी चाहत
दर्द की कहाँ ख़ुदा 
फिर क्यों ये 
बिन बुलाये ही 
आ जाती है 
रूलाती है 
तड़पाती है 
ये दर्द,
बहुत सताती है........
-अभिषेक कुमार ''अभी''
Dard ki koi 
JubaN kahan
Ye to khamosh ho
Dil ko
Ehsaas krati rhti hai.
HoN mahfil me
Ya tanhai me
Ye to harpal hi
Roolati rhti hai.
Chain pana chaheN
Samjh na aaye
Kahan ko jayeN
Jahan bhi jayeN
Ye jhat pahunch jati hai
Bin pani machhli si
Zindagi ko
chhtpatati rhti hai.
Kisi ko bhi chahat 
Dard ki kahan khudaa
Fir kyun ye
Bin bulaye hi
Aa jati hai
Roolati hai
Tadpati hai
Ye dard,
Bahut satati hai........
-Abhishek Kumar ''Abhi''

Wednesday 3 September 2014

''अच्छे दिन आने वाले हैं''

एक गाँव में एक साधू महाराज पधारे। गाँव के लोग बहुत परेशान और हताश होके दिन गुज़ार रहे थे। तो उन सब को साधू बाबा में एक आशा की किरण नज़र आई। 
बाबा भी गाँव के बीच, एक पीपल के छाँव तले बैठ के नित् अपनी धुन रमाने लगे। गाँव के लोगों के घर से हर दिन कुछ न कुछ उनके जीवन यापन के लिए आने ही लगा। रोज़ शाम को साधू बाबा गाँव के लोगों से वार्तालाप करते थे, सभी की एक ही परेशानी थी, कि बाबा गुज़ारा अब चल नहीं पावत है, कोनो उपाय बताबअ !
साधू बाबा सब को मुख़ातिब हो बोलते, चिंता के कोनो बात नहिखे ''अच्छे दिन आवत हsss''। 
सब को बड़ी तसल्ली हुई, कि साधू महाराज ने कहा है, तो अच्छे दिन जल्द ही आने वाला होगा। गाँव वाले फिर अपने कार्य में लग गए। 
फिर कुछ दिन बाद पहुँचे, बोले बाबा ''अब तो गुज़ारे के लिए दो जुन रोटी पर भी आफ़त आ गई है'' !
साधू बाबा फिर दिलासा देते हुए बोले ''अच्छे दिन आने वाले हैं'' चिंता नाहि करो !

दिन बीतता गया, महीना भी निकल गया अब तो साल होने को आया ''गाँव वाले को ''चिंता न करो से भी अब चिंता होने लगी'' थी। अब वो साधू बाबा के पास जाना भी छोड़ दिए थे। 
पर, कुछ की भक्ति साधू महाराज पे बड़ी अटल थी, वो हार मानने वालों में से नहीं थे, वो लगातार जाते रहे और ''अच्छे दिन आने वाले हैं'' सुनते रहे। 
कुछ दिन बाद इन सब की हिम्मत भी जवाब दे गई, और अब इन्होंने भी जाना बंद कर दिया। लेकिन अंत तक एक प्रौढ़ व्यक्ति की उम्मीद नहीं हिली और वो जाता ही रहा और सुनता ही रहा ''अच्छे दिन आने वाले हैं''।

संयोग से एक दिन वो भी नहीं पहुँचा। बाबा को चिंता हुई, आख़िर वो उनका अटल विश्वासी था। बाबा ख़ुद उससे मिलने के लिए चल पड़े। जब उसके झोपड़ी के पास पहुँचे, तो गाँव वालों का जमावड़ा देखकर किसी से पूछा, क्या हुआ है ?

व्यक्ति बोला, रामबुधन्वा चल बसा !

बाबा ने एक गहरी सांस छोड़ते हुए बोला, ''ये लो अब तो इसके अच्छे दिन आने ही वाले थे, और ये चला गया''

जैसे ही ये बात गाँव वालों ने सुनी, कि फिर जो बाबा की सुताई हुई, जो सुताई हुई, कि बाबा के भी प्राण पखेरू हो गए। 

(इस अभिव्यक्ति का किसी भी जीवित और मृत प्राणी से कोई सम्बन्ध नहीं है। बस एक चेष्टा है, कि अच्छे दिन तभी आएँगे जब हम सब अपना भला बुरा ख़ुद समझेंगे, उसे फलीभूत करेंगे, और एक दूसरे को सहयोग करेंगे। किसी भी एक आदमी के कहने से या कुछ करने से कभी अच्छे दिन नहीं आने वाले। ''उम्मीद के वृक्ष में, फल लगते हैं'' ये सिर्फ़ कहावत में ही अच्छे लगते हैं। यथार्थ में नहीं।)
सादर 
-अभिषेक कुमार ''अभी''