विरह की आग ऐसी है, क़ि हम जलते हैं रात-दिन
ये सोचा, करते हैं अक्सर, कहाँ गये, वो पल छिन
क़यामत हमपे बरपी, जब जुदाई क़ा हुआ मौसम
तड़प के रह गया, ये दिल, वो ऐसा था आलम
आज भी यादों में जीते हैं, मन को कर के खिन्न
विरह की आग ऐसी है, क़ि हम जलते हैं रात-दिन
बसर करते हैं, हर लम्हें, हम तेरी सदाओं में
किसी को ऐसी ना, सजा मिले होता दुआओं में
अब हरपल हम भटक रहे, होकर के छिन्न-भिन्न
विरह की आग ऐसी है, क़ि हम जलते हैं रात-दिन
आजकल इश्क़े-मुहब्बत, सिर्फ़ क़िस्सों में सिमट गया
जिसने कर लिया, वो ज़िंदा ही, कफ़न में लिपट गया
ना जिंदा हैं, ना मरते हैं, न आराम है, उन बिन
विरह की आग ऐसी है, क़ि हम जलते हैं रात-दिन
--अभिषेक कुमार झा ''अभी''
Virah ki aag aisi hai, ki ham jalte hain raat-din
Ye socha karte hain aksar kahan gye wo pal chhin
Qayamat hampe barpi, jab zudai ka huaa mausam
Tadap ke rah gya, ye dil, wo aisa tha aalam
Aaj bhi yaadon me jite hain, man ko karke khinn
Virah ki aag aisi hai, ki ham jalte hain raat-din
Basar karte hain, har lamhen, ham teri sadaon me
Kisi ko aisi na, saza mile hota duaaon me
Ab harpal ham bhatak rahe, hokar ke chhinn-bhinn
Virah ki aag aisi hai, ki ham jalte hain raat-din
Aajkal ishqe-muhabbat, sirf kisson me simat gya
Jisne kar liya, wo zinda hi, kafan me lipat gya
Na zinda hain, na marte hain, na aaram hai, un bin
Virah ki aag aisi hai, ki ham jalte hain raat-din
—Abhishek Kumar ''Abhi''
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteआदरणीय आपने इस विरह गीत को सराहा इसके लिए आपका हृदय के अंतःकरण से धन्यवाद करता हूँ।
Deleteसादर
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (24-03-2014) को लेख़न की अलग अलग विधाएँ (चर्चामंच-1561) पर भी है!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
शहीदों को नमन के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आदरणीय आपने इस विरह गीत को सराहा इसके लिए आपका हृदय के अंतःकरण से धन्यवाद करता हूँ।
Deleteसादर
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteलेटेस्ट पोस्ट कुछ मुक्तक !
आदरणीय आपने इस विरह गीत को सराहा इसके लिए आपका हृदय के अंतःकरण से धन्यवाद करता हूँ।
Deleteसादर
दिल को छू गया ये विरह गीत ... जुदाई सही नहीं जाती ..
ReplyDeleteआदरणीय आपने इस विरह गीत को सराहा इसके लिए आपका हृदय के अंतःकरण से धन्यवाद करता हूँ।
Deleteसादर
वियोग रस से सरोबार सुंदर भावपूर्ण गीत ...
ReplyDeleteआदरणीय आपने इस विरह गीत को सराहा इसके लिए आपका हृदय के अंतःकरण से धन्यवाद करता हूँ।
Deleteसादर
मर्मस्पर्शी एवं अत्यंत भावपूर्ण ! विरह वेदना को बखूबी बयान किया है ! बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteआदरणीय आपने इस विरह गीत को सराहा इसके लिए आपका हृदय के अंतःकरण से धन्यवाद करता हूँ।
Deleteसादर
बहुत सुंदर गीत
ReplyDeleteआदरणीय आपने इस विरह गीत को सराहा इसके लिए आपका हृदय के अंतःकरण से धन्यवाद करता हूँ।
Deleteसादर
आजकल इश्क़े-मुहब्बत, सिर्फ़ क़िस्सों में सिमट गया
ReplyDeleteजिसने कर लिया, वो ज़िंदा ही, कफ़न में लिपट गया
ना जिंदा हैं, ना मरते हैं, न आराम है, उन बिन
विरह की आग ऐसी है, क़ि हम जलते हैं रात-दिन
--अभिषेक कुमार झा ''अभी''
बहुत सुन्दर चित्र है भावनाओं के उफान का
आदरणीय आपने इस विरह गीत को सराहा इसके लिए आपका हृदय के अंतःकरण से धन्यवाद करता हूँ।
Deleteसादर
एक नज़्म लिखने की मैंने (अभिषेक कुमार ''अभी'') भी कोशिश की है, जिसमें विरह का भाव है
ReplyDeleteआप सबकी प्रतिक्रिओं का इंतज़ार
विरह की आग ऐसी है, क़ि हम जलते हैं रात-दिन
ये सोचा, करते हैं अक्सर, कहाँ गये, वो पल छिन
--अभिषेक कुमार झा ''अभी''
जल के ख़ाक हुए एक दिन
सुन्दर मनोहर
आदरणीय आपका हार्दिक आभारी हूँ, जो आपने इस नज़्म के मर्म में जाके अपने बेहतरीन अल्फ़ाज़ों से नवाज़ा है।
Deleteसादर प्रणाम
bahut sundar.......
ReplyDeleteआदरणीय आपने इस विरह गीत को सराहा इसके लिए आपका हृदय के अंतःकरण से धन्यवाद करता हूँ।
Deleteसादर
बहुत सुंदर एवं मर्मस्पर्शी रचना.
ReplyDeleteआदरणीय आपने इस विरह गीत को सराहा इसके लिए आपका हृदय के अंतःकरण से धन्यवाद करता हूँ।
Deleteसादर
अति सुन्दर !
ReplyDeleteआदरणीय आपने इस विरह गीत को सराहा इसके लिए आपका हृदय के अंतःकरण से धन्यवाद करता हूँ।
Deleteसादर
अहसासों को समेटे सुदंर ग़ज़ल.
ReplyDeleteभाई आपने इस विरह गीत को सराहा इसके लिए आपका हृदय के अंतःकरण से धन्यवाद करता हूँ।
Delete