Tuesday 8 April 2014

हम वीर धीर

हम वीर धीर 
हम नहीं रुकें 
अत्याचारों को 
सह के बढ़ें
तुम चाहे कर लो 
लाख़ जतन
होना तुम्हरा ही 
है अब पतन

ये झुंझलाहट 
बतलाती है
तुमको अब दहशत 
ये सताती है
कुर्सी के तुम 
उन्माद में जो
ज़हर घोल रहे 
इस समाज में जो
भाषण से तुम्हारी 
कायरता झलकती है
साम्प्रदायिक राजनीति
तुमसे टपकती है


पर अब हम 
इतने मूरख तो नहीं
कि झांसे में तुम्हरे 
फिर आ जाएँ
अब तक तो 
हम ग़ुलाम रहे 
फिर से अब 
ग़ुलाम बन जाएँ  

तू कर ले 
अपना काम 
हम करेंगे 
अपना काम
वादा है इस बार
होगा तेरा काम तमाम

हम वीर धीर 
हम नहीं रुकें 
अत्याचारों को
सह के बढ़ें
--अभिषेक कुमार ''अभी''

9 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (09-04-2014) को चुनाव की नाव, पब्लिक का लक; चर्चा मंच 1577 में "अद्यतन लिंक" पर भी है!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हास्य-व्यंग्य के सशक्त आयाम
    अलबेला खत्री का असमय में जाना
    जमीन से जुड़े एक महान कलाकार का जाना है...
    चर्चा मंच परिवार की ओर से भाव भीनी श्रद्धांजलि।
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत सुंदर एवं समसामयिक रचना.

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  3. बहुत सुन्दर और प्रभावी रचना...

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  4. सुन्दर प्रभाव और सशक्त भाव बोध की रचना-

    जाग गया है वोटर अब ,

    भांप गया है खानदानी फरेब को।

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  5. सार्थक सन्देश देती सशक्त प्रस्तुति ! आभार !

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  6. सुन्दर और सामयिक रचना  अभी जी, बधाई.… अब तो जागना ही होगा…



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  7. बहुत सुन्दर कविता ..अभी जी ..

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  8. वाह ! प्रभावशाली रचना

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