हम वीर धीर
हम नहीं रुकें
अत्याचारों को
सह के बढ़ें
तुम चाहे कर लो
लाख़ जतन
होना तुम्हरा ही
है अब पतन
ये झुंझलाहट
बतलाती है
तुमको अब दहशत
ये सताती है
कुर्सी के तुम
उन्माद में जो
ज़हर घोल रहे
इस समाज में जो
भाषण से तुम्हारी
कायरता झलकती है
साम्प्रदायिक राजनीति
तुमसे टपकती है
पर अब हम
इतने मूरख तो नहीं
कि झांसे में तुम्हरे
फिर आ जाएँ
अब तक तो
हम ग़ुलाम रहे
फिर से अब
ग़ुलाम बन जाएँ
तू कर ले
अपना काम
हम करेंगे
अपना काम
वादा है इस बार
होगा तेरा काम तमाम
हम वीर धीर
हम नहीं रुकें
अत्याचारों को
सह के बढ़ें
--अभिषेक कुमार ''अभी''
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (09-04-2014) को चुनाव की नाव, पब्लिक का लक; चर्चा मंच 1577 में "अद्यतन लिंक" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हास्य-व्यंग्य के सशक्त आयाम
अलबेला खत्री का असमय में जाना
जमीन से जुड़े एक महान कलाकार का जाना है...
चर्चा मंच परिवार की ओर से भाव भीनी श्रद्धांजलि।
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर एवं समसामयिक रचना.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और प्रभावी रचना...
ReplyDeleteसुन्दर प्रभाव और सशक्त भाव बोध की रचना-
ReplyDeleteजाग गया है वोटर अब ,
भांप गया है खानदानी फरेब को।
सार्थक सन्देश देती सशक्त प्रस्तुति ! आभार !
ReplyDeleteसुन्दर और सामयिक रचना अभी जी, बधाई.… अब तो जागना ही होगा…
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता ..अभी जी ..
ReplyDeletesundar ojpurn samyik rachna :)
ReplyDeleteवाह ! प्रभावशाली रचना
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