भूल कर भी, अब तुम यकीं, नहीं करना
बात सच हो, जो अब कहीं, नहीं करना
सामने जो, मुँह मियाँ, बनते हों मिठ्ठू
सोच, जाँ देने की वहीँ, नहीं करना
लाख चाहे, आये यहाँ, मुसीबत गर
तुम कभी भी, गिरवी ज़मीं, नहीं करना
लूट के बिख़रे, हम, यहाँ ज़माने में
मश्'वरा अब, ऐसा अभी, नहीं करना
भूल कर भी, अब तुम यकीं, नहीं करना
बात सच हो जो, अब कहीं, नहीं करना
--अभिषेक कुमार ''अभी''
(बहर : फाइलातुन/मुसतफइलुन/मुफाईलुन)
Bhool kar bhi, ab tum, yakin nahi karna
Baat sach ho jo, ab kahin, nahi karna
Samne jo, munh miyan, bnte ho miththu
Soch jaan dene ki, wahin nahi karna
Laakh chahe, aaye yahan, musibat gar
Tum kabhi bhi, girvi, zamin nahi karna
Loot ke bikhre, ham, yahan zamane me
Mash'wra ab, aisa abhi, nahi karna
Bhool kar bhi, ab tum, yakin nahi karna
Baat sach ho jo, ab kahin, nahi karna
--Abhishek Kumar ''Abhi''
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (04-04-2014) को "मिथकों में प्रकृति और पृथ्वी" (चर्चा अंक-1572) में "अद्यतन लिंक" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चैत्र नवरात्रों की शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर रचना.
ReplyDeleteनई पोस्ट : मिथकों में प्रकृति और पृथ्वी
वाह ...बहुत सुंदर
ReplyDeleteसामने जो, मुँह मियाँ, बनते हों मिठ्ठू
ReplyDeleteसोच, जाँ देने की वहीँ, नहीं करना
....बहुत खूब...सुन्दर ग़ज़ल...
वाह,!!अच्छी सीख देती हुई सार्थक गज़ल ...
ReplyDeleteशिक्षाप्रद उम्दा रचना |
ReplyDeleteआशा
शानदार कविता रची है आपने शिक्षाप्रद
ReplyDeleteबहुत सुंदर और गहरी रचना, बधाई
ReplyDeleteवाह ! बहुत खूब ! हर शेर बेहतरीन ! अंदाज़े बयाँ लाजवाब !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर........
ReplyDeleteलाजवाब शेर इस गज़ल के ... मज़ा आया ..
ReplyDeleteit`s a nice post......wah...;-)
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