न हिंदू बने, न मुसल्मान बने
इक सच्चा सिर्फ़, इंसान बने
करें ख़ात्मा, हर बुराई का
सदा साथ दें, सच्चाई का
इंसानियत न भूलें कभी
अब मन से हम, महान बने
न हिंदू बने, न मुसल्मान बने
इक सच्चा सिर्फ़, इंसान बने
देखें आफ़ताब से, महताब तक
हम चुने आब से, ग़ुलाब तक
इन्क़िलाब करें, इंतिख़ाब करें
हम ज़िंदा हैं, न शमशान बने
न हिंदू बने, न मुसल्मान बने
इक सच्चा सिर्फ़, इंसान बने
नफ़रतों का, जो बीज बोता है
अक़्सर बाद में, वही रोता है
ख़ुद तक़दीर का, तहरीर करें
ज़रूरत मंद का, आसमान बने
न हिंदू बने, न मुसल्मान बने
इक सच्चा सिर्फ़, इंसान बने
ख़ुदा की रहमत से, हैं इंसान बने
जहाँ में आए हैं, तो नेक़ काम करें
इंसानी ज़िंदगी, मिलती मुश्किल से
इसे पा कर के, न गुमनाम बने
न हिंदू बने, न मुसल्मान बने
इक सच्चा सिर्फ़, इंसान बने
--अभिषेक कुमार ''अभी''
N hindu bne n musalman bne
Ik sachcha sirf, insaan bne
Kren khatma hr burai ka
Sda sath den schchai ka
Insaniyat n bhulen kabhi
Ab mn se hm mahan bne
N hindu bne n musalman bne
Ik sachcha sirf, insaan bne
Dekhen aaftab se mahtab tk
Hm chune aab se gulaab tk
Inqilab karen intikhab karen
Hm zinda hain, n shmshan bne
N hindu bne n musalman bne
Ik sachcha sirf, insaan bne
Nafrton ka jo beej bota hai
Aksar bad me whi rota hai
Khud taqdeer ka tahrir kren
zarurat mand ka aasman bne
N hindu bne n musalman bne
Ik sachcha sirf, insaan bne
Khuda ki rahmat se hain insan bne
Jahan me aaye hain to neq kam kren
Insaani zindagi miltee mushkil se
Ise pa kar ke n gumnaam bne
N hindu bne n musalman bne
Ik sachcha sirf, insaan bne
--Abhishek Kumar ''Abhi''
बहुत ही नेक ख़याल और नेक इरादे ! काश जैसा आपने सोचा है वह सच हो जाये ! शुभकामनायें !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (20-04-2014) को ''शब्दों के बहाव में'' (चर्चा मंच-1588) में अद्यतन लिंक पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
haan ji sachha insan hi ban-na chahiye ...sundar rachna
ReplyDeleteइनसानियत आदमियत की नियत हुई ऐसी..,
ReplyDeleteजिनावरों की सफ़े-जमीन से हस्ती ही उठ गई..,
बद अमनी बद दयानती क्या तिरी नज़र लगी..,
कि मिरे बागो-गुलसिताँ से गुल-बहारा रूठ गईं.....
बहुत सुंदर भाव. वैमनस्यता के दौर में सार्थक संदेश देती इस रचना के लिए बधाई.
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभि :)
ReplyDeleteसुन्दर चित्रण...उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteअत्यंत ही सुन्दर एवं सार्थक अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteएक बहुत पुराना गाना है जो मुझे आपकी कविता पढ़ते ही याद आया ;
ReplyDeleteन मैँ भगवान हूँ,
न मैँ शैतान हूँ ,
दुनिया चाहे जो समझे,
मैँ तो इंसान हूँ॥....ये गाना मुझे पसंद है और आज से आपकी कविता भी॥ बधाई अभिषेक भाई!