यहाँ हर किसी से न इज़्हार करना
यहाँ हर किसी से न अब प्यार करना
कहाँ हर कली ही गुलाब सी होती
किसी से भी संभल के इक़रार करना
यहाँ पीर काफ़िर बने घूमते हैं
जरा सोच कर अब ही इतिबार करना
क़दम दर क़दम ठोकरें भी मिले तो
ख़ुदी से कभी तुम न तक़रार करना
ग़मे ज़िंदगी क्यूँ बिताएँ यहाँ हम
ये रहमत ख़ुदा की है गुलज़ार करना
अगर तीरगी ज़िद्द पे आ गई है
'अभी' फ़िर दीये की तू बौछार करना
-अभिषेक कुमार ''अभी''
Yahan har kisi se n izhaar karna
Yahan har kisi se n ab pyaar karna
Kahan har kli hi gulab si hoti
Kisi se bhi sambhal ke ikraar karna
Yahan peer kafir bane ghumte hain
Jara soch kar ab hi itibaar karna
Qadam dar qadam thokren bhi mile to
Khudi se kabhi tum n taqraar karna
GmeN zindgi kyun bitayen yahan ham
Ye rahmat khuda ki hai gulzaar karna
Agar teergi zidd pe aa gyi hai
'Abhi' fir diye ki tu bauchhar karna
-Abhishek Kumar ''Abhi''
बहुत सुंदर गजल.
ReplyDeleteनई पोस्ट : कि मैं झूठ बोलिया
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ReplyDeleteआपकी इस रचना का लिंक दिनांकः 29 . 8 . 2014 दिन शुक्रवार को I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ पर दिया गया है , कृपया पधारें धन्यवाद !
बढ़िया ।
ReplyDeletewah Abhi bhai umda
ReplyDeletelajawaaab gazal....
ReplyDelete"यहाँ पीर काफ़िर बने घूमते हैं जरा सोच कर अब ही इतिबार करना" सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीय अभि जी!
ReplyDeleteधरती की गोद