Sunday, 24 August 2014

कैरियर एकदम सेट है।

रामबुधन जी के तीन बच्चे हुआ करते थे। 

वैसे हैं तो अब भी, मगर नहीं के बराबर। अब वो क्यों नहीं के बराबर हैं, ये जानते हैं :

बात उस समय की जब रामबुधन जी का बड़ा बेटा 14 साल का, मझला बेटा 12 और छोटा क़रीब 9 साल का था। ये उम्र ऐसी है, जिसमें हर माँ-बाप को अपने बच्चों पे निगरानी रखनी पड़ती है। रामबुधन जी भी सभी के क्रियाकलापों को जानने ख़ातिर, सभी को बिन बताये, उन पर नज़र रख रहे थे। कुछ ही दिन में तीनों का चाल प्रकृति उनको समझ में आ गया।

फ़िर एक दिन शाम को आँगन में बैठे चाय की चुस्की लेते हुए, अपने जीवन के हिस्सेदार से मुख़ातिब हो बोले, लक्ष्मी हमारे तीनों बेटों का कैरियर एकदम सेट है। लक्ष्मी जी प्रसन्न चित्त मुद्रा में बोली, क्यूँ जी कोई ज्योत्षी को दिखाए हैं क्या ?
रामबुधन जी बोले, अर्रे नहीं मेरे जीवन के खैव्या, ये हम कह रहे हैं हम। 

अब तपाक से लक्ष्मी जी बोल पड़ी कैसे ?
तो रामबुधन जी बोले, हमने दो दिन रामकिशन का पीछा किया कि आखिर ये दिन भर क्या सब करता है, तो पता चला की ये तो 
- बातें फेंकने में माहिर है। 
- अपने दोस्तों को ख़्वाब दिखा-दिखा कर उनसे सारा काम करवा लेता है।
- झूठ तो ऐसे बोलता है जैसे सत्यवादी रामकिशन यही हो साक्षात् और 
- सामने से हाथ जोड़ता है, फिर पीठ पीछे उसी को गाली।
अब तुम समझ जाओ ये क्या बनेगा !

और हमारा दूसरा बेटा ?
वो तो अपने नाम रामपाल और सेहत की तरह ही है।
- कभी किसी वाहन का किराया नहीं देता, चाहे वो बस वाला हो या रिक्शा वाला न जाने हर जगह किस बात का स्टाफ़ चलता है।
- बाज़ार जब भी जाता है हर दूकान में घुस के कुछ न कुछ खाके बिना पैसे दिए निकल जाता है। 
- और तो और ये कहते भी सुना कि एक दिन ऐसा आएगा की सब उसे महीने में पैसे भिजवाया करेंगे।
अब तुम समझ जाओ ये क्या बनेगा !

माँ तो माँ होती है, लक्ष्मी जी के चेहरे पे शिकन आ गई और मायूस स्वर में बोली, कि ऐ जी तीसरा क्या बनेगा ?
रामबुधन जी, गहरी सांस छोड़ते हुए बोले, वो रामचरण ! 
- वो भी अपने नाम जैसा ही है, दोनों भाइयों के चरणों में पड़ा रहता है।
- किसी भी दोस्त का काम पड़ता है तो, उनसे पैसे लेकर, दोनों भाइयों को कहता है मदद करने को।
- सभी में हमेशा अपने दोनों भाइयों की डींगे हांकता रहता है।

दिन बीतते गए, महीने बीत गए अब सालों गुज़र गए। 
रामबुधन जी की भविष्यवाणी सत्य हुई। बड़ा लड़का ''नेता'' बन गया, मझला ''पुलिसवाला'' बना और छोटा ''चपरासी'' बन बैठा। 

अब आप ही बताईये की क्या ये तीनों किसी के सगे हुए हैं ?
फिर रामबुधन जी के कैसे होते ! दोनों बूढ़ा-बुढ़िया गाँव में बसर कर रहे हैं और ये तीनों शहर में ऐश कर रहे हैं।
-अभिषेक कुमार ''अभी''

12 comments:

  1. आपकी इस रचना का लिंक दिनांकः 25 . 8 . 2014 दिन सोमवार को I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ पर दिया गया है , कृपया पधारें धन्यवाद !

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    1. आशीष भाई,
      आप जो मेरी अभिव्यक्ति को मान देते हैं, इसके लिए मैं आपका हृदय के अंतःकरण से आभारी हूँ।
      भाई हमेशा खुश रहिये।

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  2. सुंदर प्रस्तुति , आप की ये रचना चर्चामंच के लिए भी चुनी गई है , सोमवार दिनांक - 25 . 8 . 2014 को आपकी रचना का लिंक चर्चामंच पर होगा , कृपया पधारें धन्यवाद !

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    1. आशीष भाई,
      आप जो मेरी अभिव्यक्ति को मान देते हैं, इसके लिए मैं आपका हृदय के अंतःकरण से आभारी हूँ।
      भाई हमेशा खुश रहिये।

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (25-08-2014) को "हमारा वज़ीफ़ा... " { चर्चामंच - 1716 } पर भी होगी।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. सादर आभार आदरणीय 'शास्त्री' सर जी इस प्रोत्साहन हेतु और चर्चामंच में मेरी इस अभिव्यक्ति को शामिल करने हेतु।
      पुनः आभार

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  4. बहुत सुन्दर...

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  5. क्या-क्या ना किया होगा इतना सब खोदने में.
    सुम्दर-सटीक.

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  6. कहा भी है पूत के पग पालने ही दिख जाते हैं , पंडितजी ने इस अवधारणा को सच सिद्ध कर दिया , और सही आकलन किया , सुन्दर बोध कथा

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  7. बहुत उम्दा है बधाइ

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  8. बेहद सशक्त व्यंग्य। कसावदार लघुकथा वृहद सन्देश लिए है। अपने वक्त की बेबाक समीक्षा भी।

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  9. वाह वाह पोत के पां तो पालने मे ही दिख जाते हैं

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