एक गाँव में एक साधू महाराज पधारे। गाँव के लोग बहुत परेशान और हताश होके दिन गुज़ार रहे थे। तो उन सब को साधू बाबा में एक आशा की किरण नज़र आई।
बाबा भी गाँव के बीच, एक पीपल के छाँव तले बैठ के नित् अपनी धुन रमाने लगे। गाँव के लोगों के घर से हर दिन कुछ न कुछ उनके जीवन यापन के लिए आने ही लगा। रोज़ शाम को साधू बाबा गाँव के लोगों से वार्तालाप करते थे, सभी की एक ही परेशानी थी, कि बाबा गुज़ारा अब चल नहीं पावत है, कोनो उपाय बताबअ !
साधू बाबा सब को मुख़ातिब हो बोलते, चिंता के कोनो बात नहिखे ''अच्छे दिन आवत हsss''।
सब को बड़ी तसल्ली हुई, कि साधू महाराज ने कहा है, तो अच्छे दिन जल्द ही आने वाला होगा। गाँव वाले फिर अपने कार्य में लग गए।
फिर कुछ दिन बाद पहुँचे, बोले बाबा ''अब तो गुज़ारे के लिए दो जुन रोटी पर भी आफ़त आ गई है'' !
साधू बाबा फिर दिलासा देते हुए बोले ''अच्छे दिन आने वाले हैं'' चिंता नाहि करो !
दिन बीतता गया, महीना भी निकल गया अब तो साल होने को आया ''गाँव वाले को ''चिंता न करो से भी अब चिंता होने लगी'' थी। अब वो साधू बाबा के पास जाना भी छोड़ दिए थे।
पर, कुछ की भक्ति साधू महाराज पे बड़ी अटल थी, वो हार मानने वालों में से नहीं थे, वो लगातार जाते रहे और ''अच्छे दिन आने वाले हैं'' सुनते रहे।
कुछ दिन बाद इन सब की हिम्मत भी जवाब दे गई, और अब इन्होंने भी जाना बंद कर दिया। लेकिन अंत तक एक प्रौढ़ व्यक्ति की उम्मीद नहीं हिली और वो जाता ही रहा और सुनता ही रहा ''अच्छे दिन आने वाले हैं''।
संयोग से एक दिन वो भी नहीं पहुँचा। बाबा को चिंता हुई, आख़िर वो उनका अटल विश्वासी था। बाबा ख़ुद उससे मिलने के लिए चल पड़े। जब उसके झोपड़ी के पास पहुँचे, तो गाँव वालों का जमावड़ा देखकर किसी से पूछा, क्या हुआ है ?
व्यक्ति बोला, रामबुधन्वा चल बसा !
बाबा ने एक गहरी सांस छोड़ते हुए बोला, ''ये लो अब तो इसके अच्छे दिन आने ही वाले थे, और ये चला गया''
जैसे ही ये बात गाँव वालों ने सुनी, कि फिर जो बाबा की सुताई हुई, जो सुताई हुई, कि बाबा के भी प्राण पखेरू हो गए।
(इस अभिव्यक्ति का किसी भी जीवित और मृत प्राणी से कोई सम्बन्ध नहीं है। बस एक चेष्टा है, कि अच्छे दिन तभी आएँगे जब हम सब अपना भला बुरा ख़ुद समझेंगे, उसे फलीभूत करेंगे, और एक दूसरे को सहयोग करेंगे। किसी भी एक आदमी के कहने से या कुछ करने से कभी अच्छे दिन नहीं आने वाले। ''उम्मीद के वृक्ष में, फल लगते हैं'' ये सिर्फ़ कहावत में ही अच्छे लगते हैं। यथार्थ में नहीं।)
सादर
-अभिषेक कुमार ''अभी''
शानदार लेखन , अभिषेक भाई धन्यवाद !
ReplyDeleteInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
आपकी इस रचना का लिंक दिनांकः 5 . 9 . 2014 दिन शुक्रवार को I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ पर दिया गया है , कृपया पधारें धन्यवाद !
किसी के पास कोई अलादीन का चिराग नहीं,जब तक हम खुद कुछ न करें, दूसरों से ही हमारे अच्छे दिन लेन की उम्मीद करें तो पेड़ के नीचे बैठ कर अंगूर की भरी बेल को ताकने सदृश्य ही होगा, और आज देश यही ही कर रहा है
ReplyDeleteसार्थक उद्धरण।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया कहानी
ReplyDeleteइसीलिए तो अब बाबाओं ,साधू संतों ,देवी देवता ,पण्डे पुजारियों ,अंदिर मंदिर से मन विश्वास रहा है ,बहुत अच्छी कोशिश और अभिव्यक्ति ,
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