सफ़र कितना भी मुश्किल हो
नज़र में सिर्फ़ मंज़िल हो
अता इतनी सी कर मौला
जो दे हमदर्द आदिल हो
मिला उससे न, जो समझे
न कोई हमसे क़ाबिल हो
मुझे मंज़ूर वो हर दुश्मन
जो दुश्मन हो, न जाहिल हो
मैं दिल तो दे किसी को दूँ
नज़र में वो तो दाख़िल हो
गिला कोई न शिकवा कर
'अभी' ज़िंदा सदा दिल हो
-अभिषेक कुमार ''अभी''
Safar kitna bhi mushkil ho
Nazar me sirf manzil ho
Ataa itni si maula kar
Jo de hmdard aadil ho
Mila us se n, jo samjhe
N koyi hmse qabil ho
Mujhe manzur wo hr dushmn
Jo dushmn ho, n jaahil ho
Main dil to de kisi ko dun
Nazar me wo to dakhil ho
Gila koyi n shikwa kar
'Abhi' zinda sdaa dil ho
-Abhishek Kumar ''Abhi''
वाह ! बहुत सुंदर ! हर शेर लाजवाब है !
ReplyDeleteसफ़र कितना भी मुश्किल हो
ReplyDeleteनज़र में सिर्फ़ मंज़िल हो
excellent expression of feelings.
लाजवाब ग़ज़ल ... मंजिल सामने रहे तो राह आसान होती है ...
ReplyDeleteहर शेर कमाल का ...
बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल..सभी अशआर बहुत उम्दा...
ReplyDelete