Wednesday, 4 June 2014

नज़र में मंज़िल हो/Nazar me manzil ho

सफ़र कितना भी मुश्किल हो
नज़र में सिर्फ़ मंज़िल हो

अता इतनी सी कर मौला
जो दे हमदर्द आदिल हो

मिला उससे न, जो समझे
न कोई हमसे क़ाबिल हो

मुझे मंज़ूर वो हर दुश्मन
जो दुश्मन हो, न जाहिल हो

मैं दिल तो दे किसी को दूँ
नज़र में वो तो दाख़िल हो 

गिला कोई न शिकवा कर
'अभी' ज़िंदा सदा दिल हो
-अभिषेक कुमार ''अभी''
Safar kitna bhi mushkil ho
Nazar me sirf manzil ho

Ataa itni si maula kar
Jo de hmdard aadil ho

Mila us se n, jo samjhe
N koyi hmse qabil ho

Mujhe manzur wo hr dushmn
Jo dushmn ho, n jaahil ho

Main dil to de kisi ko dun
Nazar me wo to dakhil ho

Gila koyi n shikwa kar
'Abhi' zinda sdaa dil ho
-Abhishek Kumar ''Abhi''

4 comments:

  1. वाह ! बहुत सुंदर ! हर शेर लाजवाब है !

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  2. सफ़र कितना भी मुश्किल हो
    नज़र में सिर्फ़ मंज़िल हो
    excellent expression of feelings.

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  3. लाजवाब ग़ज़ल ... मंजिल सामने रहे तो राह आसान होती है ...
    हर शेर कमाल का ...

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  4. बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल..सभी अशआर बहुत उम्दा...

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