Tuesday, 29 July 2014

ईद मनाना होगा/Eid Mnana Hoga

ख़ुदा की बंदगी करनी तो रोते को हँसाना होगा
हमें हर एक दिन को ईद के जैसा मनाना होगा

जहाँ में ख़ार ही बोई हुई है हर तरफ ही अब तो
हटा के इन सभी को अब गुलाबों को खिलाना होगा 

गले मिलके यहाँ दस्तूर को न अब निभाएँ हम सब
दिलों से नफ़रतों के बीज को पहले मिटाना होगा

न कोई धर्म कोई जात कोई भी न अब मज़हब हो   
यहाँ तो सिर्फ़ अब इंसान को इंसां बनाना होगा

अगर नापाक़ कोई भी करे अपनी ज़मीं को अब तो
क़फ़न ओढ़ लहू का कतरा 'अभी' मिलके बहाना होगा

ख़ुदा की बंदगी करनी तो रोते को हँसाना होगा
हमें हर एक दिन को ईद के जैसा मनाना होगा
-अभिषेक कुमार ''अभी''
Khuda ki bandgi karni to rote ko hnsana hoga
Hmen har ek din ko eid ke jaisa mnana hoga

Jahan me khar hi boyi huyi hai har taraf hi ab to
Htaa ke in sbhi ko ab gulaaboN ko khilana hoga

Gle milke yahan dastur ko n ab nibhayen hm sab
Dilon se nfaratoN ke beej ko pahle mitana hoga

N koyi dhrm koyi jaat koyi bhi n ab mzhab ho
Yahan to sirf ab insan ko insan bnana hoga

Agar napaaq koyi bhi kre apni zamin ko ab to
Qafan odh lhoo ka katra 'abhi' milke bahana hoga

Khuda ki bandgi karni to rote ko hnsana hoga
Hmen har ek din ko eid ke jaisa mnana hoga
-Abhishek Kumar ''Abhi''

5 comments:

  1. बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...सभी अशआर बहुत उम्दा और प्रभावी...

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  2. प्रेरक रचना। बहुत बढ़िया

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